श्री विनोद भाई एन. दलाल और उनके चिरस्मरणीय योगदान

श्री विनोद भाई एन. दलाल - इंजीनियरिंग उपाधि

जन्म एवं शिक्षा

विनोद भाई दलाल का जन्म २९ अक्टूबर १९२० के पावन दिन अहमदाबाद निवासी श्री नंदलाल एवं श्रीमती चंचलबेन दलाल जैसे धर्मानुरागी गुजराती जैन दंपति के यहाँ हुआ । १९२७ में उनका परिवार दिल्ली आ गया और वहाँ उनकी प्रारंभिक शिक्षा सम्पन्न हुई । १९४३ में उस समय के सर्वोच्च माने जाने वाले - बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से उन्होंने डबल इंजीनियरिंग कर स्नातक स्तर की उपाधि प्राप्त की एवं गोल्ड मेडलिस्ट हुए । आठवी कक्षा से बी. ई. तक वे सदा छात्रवृत्तियाँ प्राप्त करते रहे।

उपजीविका

अपने श्रमानुराग से उन्होंने D.C.M में Electrical Engineer, Chief Engineer एवं Advisor, Engineering Services पद प्राप्त किए। प्रतिभा, नेतृत्व एवं अध्यवसाय ने ही उनको शिखर अभियंता बनाया। धर्मानुराग, श्रम की महता एवं स्वाध्याय की त्रिवेणी उनके व्यक्तित्व के अभिन्न अंग थे। विनोद भाई दलाल ना केवल कार्य में कुशल थे अपितु मजदूरों व कारीगरों के जीवन उत्थान हेतु सदा अग्रसर रहते थे।

D.C.M के अफ़सरों के साथ

छात्राओं के लिए शिक्षा कार्यक्रम

अनेक गणमान्य हस्तियाँ जैसे राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी आदि उनके कार्य काल में D.C.M की इस विचार धारा से प्रभावित हुए। उनके इन गुणो के D.C.M के संस्थापक लाला सर श्रीराम सदा प्रशंसक रहे। D.C.M की मिलों के अतिरिक्त लेडी श्रीराम कॉलेज, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, सरदार पटेल विद्यालय, स्वतंत्र भारत मिल विद्यालय जैसे प्रसिद्ध शिक्षा केंद्रो की स्थापना में उन्होंने अहम भूमिका निभाई।

D.C.M में इंदिरा गांधी जी

D.C.M में लाल बहादुर शास्त्री जी

अभियंता कर्म एवं आध्यात्मिक प्रेम

यद्यपि वे कर्म एवं कार्यक्षेत्र के दृष्टिकोण से सदा अभियंता रहे थे तो भी उन्होंने अपनी पूज्य माताश्री से धर्मानुराग विरासत में पाया। उन्ही के पदचिन्हों पर चलते हुए श्री विनोदभाई दलाल ने १९५२ में हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ प्रबंधक समिति की सदस्यता ग्रहण की। १९६१ से १९७२ तक वे समिति के अध्यक्ष रहे। अंबाला, जगाधरी, मुज़फ़्फ़रनगर, मलेरकोटला के पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार किया। चंडीगढ़, आगरा और मुरादाबाद के नए मंदिरों के निर्माण का श्रेय भी उनको ही जाता है। दशको पूर्व मुनि श्री जिनविजय जी द्वारा खोजे गए काँगड़ा मंदिर स्थल पर नए मंदिर के निर्माण में उनका नैतिक एवं आर्थिक सहयोग, दूरदर्शिता एवं मार्गदर्शन जैन समाज कभी भुला न पाएगा। श्री सुपार्श्वनाथ जैन मंदिर, अंबाला शहर की जीर्णोद्धार समिति के प्रधान के रूप में उनका १९७२ से १९७८ तक का सेवा अंतराल चिरस्मरणीय रहेगा। मुंबई, अहमदाबाद व अन्य स्थानो के गुरु भक्तों से उन्होंने दान संचय में जो कर्मठता दिखाई, वह भुलाना कठिन है। जैन समाज के शिरोमणि कल्याणजी आनंदजी पेढ़ी, अहमदाबाद के आजीवन अध्यक्ष एवं भारत सरकार द्वारा नियुक्त अखिल भारतीय भगवान महावीर २५०० वे निर्वाण वर्ष समारोह समिति के अध्यक्ष स्वर्गीय सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई उनके इस गुण के प्रशंसक थे । इंद्रनगर, लुधियाना के नव निर्मित मंदिर का निर्माण उनके निरीक्षण में हुआ। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत के अनेक जैन मंदिर एवं शिक्षण संस्थानो जैसे आत्मानंद जैन कॉलेज अंबाला, फरीदाबाद जैन मंदिर, बडोत जैन मंदिर, मेरठ जैन मंदिर, अयोध्या एवं रत्नपुरी महातीर्थ, होशियारपुर जैन मंदिर, शाहदरा जैन मंदिर, गुड़गाँव जैन मंदिर, महावीर स्मारक -दिल्ली, जैन देरासर गुजरात विहार-दिल्ली, जैन देरासर गुजरात अपार्टमेंट - दिल्ली, जैन मंदिर वल्लभ विहार रोहिणी-दिल्ली तथा विजय वल्लभ स्मारक-दिल्ली के निर्माण कार्य का निरीक्षण एवं निर्देशन का श्रेय भी विनोद भाई दलाल को ही जाता है। वे Bhogilal Leharchand Institute of Indology के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे । जैन भारती मृगावती विद्यालय दिल्ली की स्थापना भी इनहि के सुपर्यासो और कर्मठता से सम्भव हो सकी।

काँगड़ा मंदिर जीर्णोद्धार

विजय वल्लभ स्मारक दिल्ली

जैन समाज को उनका यह योगदान बिनाहिचक कहलवाता है कि वे व्यक्ति नहीं स्वयं में संस्था थे । जैन समाज विनोद भाई को शिखर-पुरुष के रूप में देखता था । अपने जीवन काल में वे जैन समाज के विभिन्न संस्थानो एवं भारत सरकार द्वारा अनेक सम्मान एवं पुरस्कारों से सुशोभित हुए।

सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई -
विनोद भाई का सम्मान करते हुए

भारत सरकार एवं जैन
समाज द्वारा दिए गए सम्मान

गुरुभक्ति

श्री विनोद भाई दलाल की कार्य कुशलता और कर्तव्य निष्ठा के साथ साथ गुरुभक्ति भी विशेष उल्लेखनीय है। वह युगपुरुष पंजाब केसरी श्रीमद विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज, आचार्य विजय समुद्र सूरीश्वरजी महाराज, विजय इंद्रदीन सूरीश्वरजी महाराज, विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी महाराज, आचार्य पद्मसागर महाराज जैसे गच्छाधिपतीयों के विशेष कृपा-पात्र एवं विश्वासपात्र थे। वे जैन शिरोमणि आचार्य वसंत सूरिजी महाराज, साध्वी श्री मृगावती श्री जी जैसे अनेक गुरूजनो के निकट रहे। उनका सरल एवं कर्तव्य निष्ठ स्वभाव उन्हें सभी का प्रिय बना देता। उनके आग्रह पर अनेक गच्छाधिपती एवं गुरूजनो ने उनके पंजाबी बाग दिल्ली स्थित निवास पर अपने चरणकमलो से पदार्पण कर उसे पवित्र किया है।

साध्वी श्री मृगावती श्री जी
के साथ

गच्छाधिपती विजय समुद्र सूरीश्वरजी महाराज
विनोद भाई के निवास स्थान पर

हस्तिनापुर तीर्थ पर अमिट छाप

श्री विनोदमाई दलाल का आध्यात्मिक जीवन मात्र ३२ वर्ष की आयु में हस्तिनापुर की पावन भूमि से आरम्भ हुआ । उन्होंने १९५२ में हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ प्रबंधक समिति की सदस्यता ग्रहण की। यहीं से दिशा पाकर वे जैन गुरुजनो के निकट आए एवं जैन मंदिरो के जीर्णोद्धार के कार्य में अग्रेसर हुए । १९६१ से १९७२ (विक्रम संवत २०१८- २०२८) तक वे हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ प्रबंधक समिति के अध्यक्ष रहे। उसके पश्चात वे अंतिम समय तक श्री हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ समिति के निर्माण समिति के सतत अध्यक्ष पद पर सुशोभित रहे। उनके मार्गदर्शन एवं देख रेख में हस्तिनापुर तीर्थ में अनेक नव निर्माण हए जैसे की शांतिनाथ भगवान जिनालय, भोजनालय, ऋषभदेव भगवान का पारणा एवं कल्याणक मंदिर, सेठ श्री सुरजमल नगिनदस झवेरी धर्मशाला, श्री धर्मचंद कंचनकुमारी जैन उपासना भवन, संघवी श्री केशरीमलजी गादिया धर्मशाला, श्रीमती मोहन देई ओसवाल जैन पारणा भवन, निशियां जी एवं श्री ऋषभदेव भगवान की निर्वाण भूमि अष्टापद।

किसी भी महान कार्य के सफल नेतृत्व के लिए एक ही विचार धारा एवं दृढ़ संकल्प वाले सहयोगियों का होना अती आवश्यक है। विनोद भाई की इस आध्यात्मिक यात्रा में एसे ही एक सहयोगी बने श्री निर्मल कुमार जैन। आज चहुं दिशाओं में श्री हस्तिनापुर तीर्थ की ख्याति के साथ साथ यहाँ पर अष्टापद मंदिर एवं अन्य मंदिरों के निर्माण से जो चिरप्रतिक्षित स्वप्न साकार हुआ है उसमें विशेष रूप से इन दोनो तीर्थ प्रेमियों श्री विनोद भाई दलाल (अध्यक्ष निर्माण समिति) एवं श्री निर्मल कुमार जैन (महामंत्री) के सर्वस्व समर्पण का इतिहास छिपा हुआ है, जिसे कलमबद्ध नहीं किया जा सकता। निर्मल कुमार जी विनोद भाई को बड़े भाई समान आदर व सम्मान देते है । हमारी शासन देव से यही प्रार्थना है कि वह निर्मल जी को यश, धर्मानुराग, गुरुभक्ति, शिक्षाप्रेम, समृद्धि के साथ साथ सुदृढ़ स्वास्थ एवं लम्बी आयु दे ।

श्री निर्मल कुमार
जैन

श्री विनोदभाई और
निर्मल कुमार जैन

अष्टापद मॉडल के साथ सेठ श्री श्रेणिकभाई,
निर्मल कुमार जैन और विनोदभाई दलाल

यह नियति ही थी की श्री विनोद भाई के आध्यात्मिक जीवन का आरम्म, विस्तार एवं अंत हस्तिनापुर भूमि पर हुआ। वे १९५२ से हस्तिनापुर तीर्थ से जुडे और २००९ में अष्टापद तीर्थ के भव्य निर्माण का सारा कार्य पूर्ण करके स्वर्गवासी हुए । अपनी ५८ वर्ष की इस आध्यात्मिक यात्रा में उनकी अर्धांगिनी श्रीमती चंपाबेन ने उनका पग पग पर सम्पूर्ण सहयोग किया। जहाँ विनोद भाई हस्तिनापुर समिति के सभी कर्मचारी व सहयोगियों से परिवार समान स्नेह रखते थे; वहीं चंपाबेन अपने साहस, अनुशासन व प्रेम द्वारा माता सी छवि रखती थी। यह दोनो महान आत्माए जैसे हस्तिनापुर तीर्थ की सेवा के लिए ही धरती पर अवतरित हुई थी। २००९ में अष्टापद का निर्माण कार्य पूर्ण होने के साथ ही यह दोनो पुण्य आत्माये दो मास के भीतर ही इस लोक से विदा हो गई।

चंपाबेन २२ - ३ - २००९ व विनोद भाई २६ - ५ - २००९ को इस देह को त्याग कर प्रभु शरण में स्तित हुए।

विनोदभाई और चंपाबेन दलाल

विनोदभाई और चंपाबेन दलाल

आभारी जैन समाज

जैन समाज ने यह व्यक्त किया की “उत्तरी भारत के सभी प्राचीन जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार में विनोद भाई दलाल की विशिष्ट भूमिका एवं मार्गदर्शन को विस्मृत कर पाना अशक्य है ।" जैन समाज उनकी सन्निधि में हमेशा गौरवान्वित अनुभव करता रहा। उनके जैसे शिखर-पुरुष को देखकर जहाँ गीता की "शरीरमाध्यम खलु धर्मसाधनम्" की पंक्ति याद आती है वहीं Bishop's Candlesticks की शाश्वत पंक्तियाँ साकार हो उठती है - This poor body is the living temple of God. वे कंकरीट के जंगल से कोसो दूर और अलग सच्चे, जीवंत एवं मुर्तिमंत मंदिर रूपी काया के स्वामी थे।