इस मंदिर में श्री हीर विजय सूरीश्वर जी के शिष्य श्री शांतिचंद्रोपाध्याय द्वारा विक्रम संवत १६४५ ज्येष्ठ शुक्ला ८ को प्रतिष्ठित श्री शांतिनाथ भगवान जी की प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजमान है । उनके बाईं ओर की मूर्ति विक्रम संवत १६८२ में आचार्य श्री विजयसेन सूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित है । १४वीं-१५ वीं शताब्दी की प्रतिष्ठित धातु प्रतिमाएं भी हैं । विक्रम संवत १९८३ की आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरी द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं।
तीर्थ पर पधारे यात्रियों को नि:शुल्क भोजन की सुविधा के लिए भोजनशाला का निर्माण कराया गया जिसका उद्धघाटन श्री माणकचन्द जी बेताला, मद्रास ने वैशाख सुदि दोयज दिनांक १४.०५.१९७२ को सम्पन्न किया। भोजनशाला के निर्माण में श्री विनोद भाई एन. दलाल, श्री देवराज जैन, दिल्ली, श्री धनराजजी जैन दिल्ली एवं अन्य ट्रस्टियों का विशेष सहयोग रहा।
श्री ऋषभदेव भगवान के पारणे की घटना को मूर्तरूप देने के लिए श्री विनोद भाई एन. दलाल के मार्गदर्शन में, भव्य पारणा एवं कल्याणक मन्दिर का निर्माण हुआ है। इस मन्दिर में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव प्रभु की ७ फुट १ इंच की खड़ी प्रतिमा इक्षुरस ग्रहण करती हुई एवं श्री श्रेयांसकुमार की ६ फुट ७ इंच की खड़ी प्रतिमा इक्षुरस देती हुई मुद्रा में प्रतिष्ठित की गई है। इसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत २०३४ में तद्दानुसार वैशाख सुदि तीज दिनांक १०.०५.१९७८ को परमार क्षत्रियोंद्धारक, गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी म.सा. के द्वारा सम्पन्न कराई गई। इस मन्दिर में सेठ श्री श्रेणिक भाई कस्तूर भाई अहमदाबाद,श्री खैरायतीलाल जैन दिल्ली, श्री वीरचन्द जैन दिल्ली, श्री धनराजजी जैन दिल्ली एवं अन्य ट्रस्टियों का सराहनीय योगदान रहा। १६ वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ भगवान, १७ वें तीर्थंकर श्री कुन्थुनाथ भगवान तथा १८ वें तीर्थंकर श्री अरनाथ भगवन्तों के च्यवन, जन्म, दीक्षा तथा केवल ज्ञान (इस प्रकार कुल १२) कल्याणकों के भव्य मार्बल के चित्रपट्ट मंदिर की दीवारों पर सुशोभित है।
तीर्थ पर पधारे यात्रियों को ठहरने की उचित व्यवस्था मिल सके उसके लिए श्री जे.एस. झवेरी मालिक फर्म क्राउन टी.वी. दिल्ली एवं अन्य भाग्यशालियों के सहयोग से इस धर्मशाला का निर्माण हुआ। इसका उद्धघाटन अक्षय तृतीया, दिनांक १९.०७.१९८७ को सम्पन्न हुआ। इसमें सभी कमरों में अटैच बाथरूम की व्यवस्था है।
कमरे : १०८
तीर्थ पर पधारने वाले यात्रीयों द्वारा अति आधुनिक सुविधाओं से युक्त वातानुकूलित बड़े कमरों की माँग को देखते हुए एक अन्य धर्मशाला के निर्माण की आवश्यकता महसूस की गई । मंडार निवसी संघवी रुगनाथमलजी समरथमलजी श्रीमती असूबेन दोशी परिवार ने धर्मशाला का निर्माण करवा कर इसे तीर्थ को समर्पित किया | यह वातानुकूलित कमरों तथा लिफ़्ट से युक्त तिमंज़िला धर्मशाला है ।
कमरे: १६१
सुइट कमरे: ४३
तीर्थ पर पधारने वाले साधु-साध्वियों को ठहरने की उचित सुविधा प्राप्त हो, इसके लिए श्री वी.सी. जैन भाभू मालिक फर्म-सीयर इन्डिया दिल्ली के सहयोग से इस उपासना भवन का निर्माण हुआ। इसका उद्धघाटन कार्तिक पूर्णिमा, दिनांक २३.११.१९८८ को सम्पन्न हुआ।
श्री विनोद भाई एन. दलाल के मार्गदर्शन में ही, अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव तथा अन्य संघो एवं यात्रियों की तीर्थ पर बढती संख्या को दृष्टिगत रखते हुए पधारे यात्रियों को ठहरनें की उचित व्यवस्था मिले उसके लिए श्री किरण कुमार के. गादिया बंगलौर निवासी एवं अन्य भाग्यशालियों के सहयोग से इस धर्मशाला का निर्माण हुआ। जिसका उद्धघाटन अक्षय तृतीया, दिनांक २७.०४.१९९० को सम्पन्न हुआ। यह एक ३ मंज़िली आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण धर्मशाला है ।
कमरे: ११२
अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव पर तपस्वियों की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए, तीर्थ पर एक विशाल पारणा हॉल का निर्माण कराया गया। आज इसी पारणा हॉल में अक्षय तृतीया पर एक साथ सभी तपस्वियों को सामूहिक रूप से पारणा कराया जाता है। इस पारणा हॉल का निर्माण श्री अभय कुमार ओसवाल एवं श्रीमती अरूणा ओसवाल लुधियाना के सहयोग से हुआ। इसका उद्धघाटन अक्षय तृतीया, दिनांक २७.०४.१९९० को हुआ।
यह स्थान श्वेताम्बर जैन मन्दिर से २ कि.मी. दूर उत्तर दिशा में स्थित है। इस स्थान पर जैन शिल्पकला के अनुरूप सुन्दर भव्य मन्दिर बना है। जिसमे श्री ऋषभदेव भगवान के चारो दिशाओं में चार चरण प्रतिष्ठित किये गये है। इसके अलावा श्री शांतिनाथ भगवान, श्री कुन्थुनाथ भगवान, श्री अरनाथ भगवान, श्री मल्लिनाथ भगवान, श्री मुनिसुव्रत स्वामी, भगवान श्री पार्श्वनाथ प्रभु तथा श्री महावीर स्वामी के चरण विराजमान है। इस मन्दिर का शिलान्यास श्री मणीलाल जी दोशी परिवार दिल्ली, ने किया था। इसकी प्रतिष्ठा, कल्याणक तीर्थोद्धारक, शान्तिदूत, गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरीश्वर जी म. सा. की निश्रा में वैशाख सुदि बारस, दिनांक ०८.०५.१९९८ को सम्पन्न हुई।
शास्त्रों में वर्णित ऐसे महामहिमावंत श्री अष्टापद तीर्थ की संरचना श्री हस्तिनापुर की धन्य धरा पर साकार रूप ले चुका है। १६० फुट व्यास तथा १०८ फुट ऊंचे, आठ पदों वाले ऐसे अष्टापद पर्वत का निर्माण किया गया है। पर्वत के ऊपर जैन शिल्पकला के अनुरूप भव्य सुन्दर मन्दिर की रचना की गई है। जिसकी ध्वजा सहित मन्दिर की कुल ऊंचाई १५१ फुट है। इस मन्दिर में चारों दिशाओं में क्रमशः २-४-८ तथा १० जिनबिम्ब अर्थात २४ भगवान विराजमान किए गये है । सम्पूर्ण मन्दिर संघेमरमर में बना है। जो शिल्पकला की दृष्टि से विश्व में अद्वितीय एवं अलोकिक है। मन्दिर के निचले भाग (समवशरण में) श्री ऋषभदेव भगवान की चार प्रतिमाए (चौमुखी) प्रतिष्ठित की गई है। समवशरण में ही श्री ऋषभदेव भगवान का सम्पूर्ण परिवार जिसमें उनके माता पिता, दो पत्निया, दोनो पुत्रियां तथा भरत चक्रवर्ती के साथ ९९ पुत्रों की प्रतिमाए स्थापित की गई है। पर्वत के बाहर दूसरे, तीसरे तथा चौथे पदो पर ५०१, ५०१ तथा ५०१ तापस अर्थात कुल १५०३ प्रतिमाए भी विराजमान की गई है। अष्टापद मन्दिर की पावन प्रतिष्ठा मार्गशीर्ष सुदि पूर्णिमा, बुधवार, दिनांक ০२.१२.२००९ को सम्पन्न हुई।
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