अक्षय तृतीया महापर्व

प्रभु श्री ऋषभदेव ने बेले की तपस्या के साथ दीक्षा ग्रहण की और प्रथम पारणा करने के लिए फिरने लगे। परंतु उन्हें कहीं भी जैन मुनि के योग्य भिक्षा नहीं मिली क्योंकि उस समय लोग मुनि को आहार देने की विधि नहीं जानते थे। उस समय सब युगलिये थे। उन्होंने इससे पहले कभी भी कोई साधु नहीं देखा था। दीक्षा लेने से ४०० दिनो तक प्रभु निराहार रहे अर्थात निर्जल उपवास में रहे। इस प्रकार प्रभु आर्य अनार्य अनेक देशों में विहार करते हुए वैशाख शुक्ल तीज (तृतीया) के दिन हस्तिनापुर पधारे।

उस समय उनके दूसरे पुत्र बाहुबली के पुत्र सोमप्रभ - सोमयशा राजा का यहाँ राज्य था। इनके पुत्र श्रेयांसकुमार उस राज्य के उत्तराधिकारी राजकुमार थे। एक रात राजकुमार श्रेयांसकुमार ने स्वप्न देखा कि - 'चारों तरफ़ से काले मेरु को दूध के घड़ों से स्नान करा मैंने उसकी कालिमा को धोकर निर्मल और उज्जवल बना दिया।' इसी रात को राजा सोमप्रभ ने स्वप्न देखा कि - 'एक राजा अनेक शत्रु राजाओं से घिरा हुआ है। मेरे पुत्र श्रेयांसकुमार ने उन शत्रु राजाओं को पराजित कर इसे विजय दिलाई है।'

यहाँ के सुबुद्धि नाम के सेठ को ऐसा स्वप्न आया कि- 'सूर्य से हज़ार किरणें अलग हो गई हैं। उन किरणों को श्रेयांसकुमार ने पुन: सूर्य में जोड़ दिया है। इससे सूर्य अधिक प्रकाश वाला हो गया है। प्रातः काल ये तीनों सोकर उठे और अपने अपने स्वप्नों को सोचने लगे कि इनका क्या फल होगा। अंत में ये तीनों राजसभा में आए और अपने-अपने स्वप्न एक-दूसरे को सुनाए। बहुत सोचने तथा विचार करने पर भी इन स्वप्नों के फल का निर्णय ना कर सके। अंत में ये इस निर्णय पर पहुँचे कि हम तीनों ने जो स्वप्न देखे हैं, इन सबका शुभ फल राजकुमार श्रेयांसकुमार को प्राप्त होगा। एसा प्रतीत होता है कि श्रेयांसकुमार किसी महापुरुष को कठिनाई में से मुक्त कराएगा। ऐसा निश्चय कर तीनों अपने-अपने स्थान पर चले गए।

राजकुमार अपने राजमहल में बैठा था, तभी उसे कुछ कोलाहल सुनाई दिया। लोग चिल्ला रहे थे 'प्रभु कुछ नहीं लेते। प्रभु कुछ नहीं लेते।' राजकुमार ने सेवकों से पूछा कि आज नगर में कैसा कोलाहल है ? उत्तर मिला कि आज प्रभु श्री ऋषभदेव हस्तिनापुर पधारे हैं, वे न कुछ खाते हैं न पीते हैं, न बोलते हैं और न ही निगाह ऊंची उठा कर देखते हैं। अपने पड़दादा (प्रपितामह) के आगमन के समाचार सुनकर उसके हर्ष का पारावार न रहा। वह प्रभु को देखने के लिए बड़ी उत्सुकता के साथ तुरंत उठ खड़ा हुआ। इतने में प्रभु उसके महल के पास आ पहुँचे । प्रभु को देखते ही वह नंगे पांव नीचे दौड़ा और प्रभु के चरणों में नतमस्तक होकर नमस्कार किया। प्रभु के दर्शन पाते ही उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। इस ज्ञान से उसने मुनि को आहार देने की विधि को जाना।

इतने में किसी ने गन्ने के रस से भरे हुए घड़े लाकर श्रेयांसकुमार को भेंट किए। यह इक्षुरस शुद्घ एवं एषणीय है इसलिए प्रभु के आहार के लिए उपयुक्त है, ऐसा जानकर राजकुमार ने प्रभु से सविनय प्रार्थना की- 'हे भगवन! यह गन्ने का रस शुद्ध एवं एषणीय है, इसलिए इसे ग्रहण कीजिए । प्रभु ने भी इसे ग्रहण कर तप का पारणा किया। श्रेयांसकुमार ने बैसाख शुक्ल तीज के दिन प्रभु को इक्षुरस से पारणा कराया। उसी समय आकाश से देवों द्वारा रत्नों की वर्षा होने लगी, पुष्प वृष्टि होने लगी, देवदंदुभि बजने लगी, अहोदानं-अहोदानं शब्द गुंजायमान होने लगे, शीतल सुगंधित वायु बहने लगी। ये पाँच कार्य तीर्थंकर के आहार के समय सदा होते हैं। शास्त्रकारों ने इन्हें पाँच आश्चर्य कहा है। उसी समय से यह शुभ दिन अक्षय तृतीया या आखा तीज के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रभु श्री ऋषभदेव के वर्षीतप के अनुरूप वर्षीतप करने वाले महानुभाव फिर वह चाहे साधु हो अथवा साध्वी, श्रावक हो अथवा श्राविका, भारत के कोने-कोने से हस्तिनापुर पधार कर अक्षय तृतीया को पारणा करते रहे हैं और आज भी इसी प्रकार यहाँ पधार कर श्री ऋषभदेव प्रभु के पारणे के असली धाम पर उनके स्थापित चरण तथा स्तूप की छत्रछाया में पारणा कर अपने आपको धन्य मानते हैं।

श्री हस्तिनापुर तीर्थ में अक्षय तृतीया पर्व श्री विनोदभाई दलाल परिवार द्वारा सम्पन्न दिनांक २६/०४/२०